एक दावत ऐसी भी

फोन की घंटी बज रही थी….

पाठक जी बाथरूम से दौड़ते हुए आए और फ़ोन उठाया…

हां हेलो बोलिए ठाकुर साहब !!

“अरे पाठक जी… आज मेरे भाई की शादी कि दावत है…. और आपका पता ही नहीं चल रहा। कहां हैं आप ? “ ठाकुर साहब ने पूछा।

अरे बस निकल रहे घर से…. थोड़ा काम आ गया था… इसलिए विलंब हो गया। तुम बाकी सब देखो… हम कुछ देर में पहुंचते हैं।’ पाठक जी ने आश्वासन देकर बोला।

कॉल काटने के बाद पाठक जी की नज़र घड़ी पर पढ़ी…. जिसकी बड़ी सूई 6 पर और छोटी सुई 8 पर थी। यानी समय शाम से बढ़कर रात की ओर जा रहा था और मैरिज हॉल भी 89 किलोमीटर दूर था।

अब परम मित्र के यहां जाना भी जरूरी है… इसलिए बिना विलंब किए पाठक जी ने अपना झोला उठाया और बस स्टेशन की तरफ रवाना हो गए।

इलाहाबाद बस अड्डे पहुंचकर उन्होंने कंडक्टर से प्रतापगढ़ के लिए 1 टिकट लिया…. और कानों में इयरफोन लगा के सुहाने सफ़र का आनंद लेने लगे।

बस रात्रि 9:00 बजे से चलने के बाद 11:00 प्रतापगढ़ – डेरवा मोड़ के पास उतार दिया…

यूं तो पाठक जी को कई बार यहां से डेरवा के लिए साधन आसानी से मिल जाते थे… इस बार भी उन्होंने यही सोच के बस से बड़े आराम से उतरा….पर यह ठहरा ठंड का दिसंबर वाला महीना….रात के 11:00 बजे साधन क्या…. कोई कुत्ता भी अगल-बगल नहीं दिख रहा था।

सुनसान…. विरान… सड़क….. तेज़ से बहती हवा….थोड़ा सा डरा रही थी….पाठक जी अकेले आपका झोला लिए खड़े थे… उन्हें समझ नहीं आ रहा था… की डेरवा के लिए प्रस्थान करें….या उल्टे पांव को इलाहाबाद वापस चले जाएं।

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पर यहां बात परम मित्र से थी… इसलिए झोला उठाकर कुछ दूर पैदल चलने का विचार बनाया।

चलते-चलते कब 5 किलोमीटर पूरे हो गए पता ही नहीं चला…… पर घड़ी पल – पल का हिसाब जोड़ जा रही थी…. और अब रात के 12:10 हो रहे थे।

ट्रिंग…ट्रिंग…. (फ़ोन की घंटी बजते हुए)

‘हां ठाकुर साहब बोलिए’…. पाठक जी ने बोला

‘अमा यार कहां रह गए…. 12 बज रहा….’ ठाकुर साहब ने पूछा।

‘यार आ रहा…. बस डेरवा पहुंचने वाले हैं…. तुम बताओ… बारात पहुंच गई ?’ पाठक जी ने पूछा।

‘हाँ…. कुछ देर में जयमाल होने वाला है… जल्दी आओ…. या बोलो को कार भेज दूं ?’ ठाकुर साहब ने बोला

भला इस ठंड…. गाड़ी में आराम से जाना कौन नहीं चाहेगा…. पर ठाकुर साहब के भाई की शादी में आए हैं और अपने लिए कार मंगवाएं ….तो ये अच्छा नहीं लगेगा…

‘अरे हम कुछ देर में पहुंच जाएंगे ठाकुर साहब… आप परेशान ना होइए।’ पाठक जी ने कहकर फ़ोन रख दिया।

दिमाग में डेरवा पहुंचने का ही प्लान चल रहा था कि पीछे से किसी ने आवाज लगाई।

क्यों भैया कहां जाना है…?

पाठक जी ने देखा तो एक ई-रिक्शावाला खड़ा था….

‘भईया….. यहां से 18 किलोमीटर दूर जाना है….’ पाठक जी ने बोला।

ई-रिक्शावाला: ठीक है भैया…. बैठो छोड़ देंगे

पाठक जी: कितने रुपए लोगे?

ई-रिक्शावाला: 18 किलोमीटर दूर है…. मैं क्या बोलूं… आप 800 रुपए दे देना हम छोड़ देंगे। (दया दिखाते हुए)

पाठक जी: अरे भैया बस 62 किलोमीटर लाके छोड़ी तथा ₹72 किराया लगा और तुम 18 किलोमीटर का ₹800 मांग रहे !! बहुत ज्यादा है…. हम नहीं दे पाएंगे।

ई-रिक्शावाला: नाराज़ काहे हो रहे हो… तुम ₹700 ही दे देना…. बैठो….

पाठक जी: ₹300 देंगे !! चलोगे ?

तो भैया…रात यही रुकेके पड़ी…. काहें की रात में कौनो साधन नाही मिलत है।

इतना कहकर रिक्शावाला अपने घर की ओर प्रस्थान हो गया….

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धीरे-धीरे घड़ी की सूई 1 तक पहुंच गई….

अब पाठक जी को भी अफसोस हो रहा था कि रिक्शावाले से ही मोलभाव कर लिए होते तो इस समय….. मैरिज हॉल पहुंच कर दावत का मज़ा उठा रहे होते…

गरमा-गर्म पूड़ी… पनीर की सब्जी… पुलाव और अरहर दाल साथ में रायता… गुलाबजामुन…. फिर एक – एक करके आइसक्रीम के सारे फ्लेवर….

पाठक जी के मुंह से पानी टपकने ही वाला था की…..पीछे से किसी ने आवाज लगाई।

भैया कुंडा किधर पड़ेगा ?

पाठक जी पलटे तो… लूंगी – बनियान पहने एक मोटा सा आदमी हाथों में सुरती बनाता हुए आश भरी निगाहों से पाठक जी को ही देख रहा था।

पाठक जी: भाई साहब…. आगे से बाएं वाली सड़क पकड़ कर एकदम सीधा जाएंगे तो पहले डेरवा आयेगा…. फिर वहां से भी 20 किलोमीटर दूर कुंडा।

ड्राइवर: आप इतनी रात में झोला लिए खड़े हैं आपको कहां जाना है ?

‘भाई साहब हमको तो डेरवा जाना है… परम मित्र के भाई की शादी है वहीं…. पर साधन नहीं मिलने के कारण 2 घंटे से यहीं फस गए हैं।’ पाठक जी से निराश होके कहा।

ड्राइवर: अरे भैया आइए चलिए हम आपको छोड़ देते हैं डेरवा… आप रहेंगे तो रास्ता भी बताते चलेंगे।

फिर क्या था… पाठक जी ड्राइवर के साथ गाड़ी की दिशा में बढ़ चले।

मोड़ पर मिनी ट्रक (डीसीएम) खड़ी थी… जिसमें शायद बालू या ईट लदा हुआ था।

ड्राइवर ने पाठक जी का सामान रखवाया… और फिर पाठक जी भी ट्रक के कंपार्टमेंट में बैठ गए।

(ट्रक का कंपार्टमेंट इतना बड़ा था की इसमें 2 – 3 लोग आराम से लेट जाएं)

‘भईया पकड़ कर बैठियो’… ड्राइवर ने कहा

‘अरे क्या पकड़ कर बैठे ?’ पाठक जी (आश्चर्यचकित होकर)

ड्राइवर: अरे भईया… पकड़ कर बैठो… ऊ दरवाजा ही पकड़ लो।

पाठक जी को कुछ समझ नहीं रहा था लेकिन अब ड्राइवर के दो बार कहने पर उन्होंने दरवाज़े का रॉड पकड़ लिया और ड्राइवर की तरफ देखने लगे…

ड्राइवर ने ट्रक को स्टार्ट किया..

एस्लेटर लिया….

गियर पर हाथ रखा…. और झटके से पहला गियर लगाया।

हुचूकक्क्लक्कक….हुचूकक्क्लक्कक…

धड़ामम्म्म्मम….

(ट्रक का अगला दोनों पहिया कुछ देर लिए हवा में जाकर… ज़मीन पर धड़ाम से गिरा)

पाठक जी को यूं लगा ‘आत्मा शरीर को छोड़……ट्रक का शीशा तोड़ बाहर को निकल जाएगी’

इन झटकों के बीच ट्रक धीरे – धीरे आगे बढ़ने लगा…

पाठक जी को बात समझ में आई कि इस गाड़ी का क्लच प्लेट ख़राब हो गया है इसीलिए ड्राइवर ने कुछ पकड़ के बैठने को कहा…

धीरे – धीरे ही सही….ट्रक डेरवा की तरफ़ बढ़ता जा रहा था… रास्ते में जब कहीं ट्रक बंद हो जाता था…. तो फिर से वही क्रम दोहराया जाता।

ड्राइवर…. ट्रक को स्टार्ट करता..

ज़ोर से एस्लेटर लेता….

गियर पर हाथ…. और झटके से पहला गियर लगाता….

हुचूक…. धड़ाम….म्म्म्म्म

(ट्रक का अगला दोनों पहिया कुछ देर लिए हवा में जाकर… फिर ज़मीन पर आ जाता)

और ट्रक धीरे – धीरे आगे बढ़ता…

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आख़िर 18 किलोमीटर का सफ़र तय करने के बाद ट्रक डेरवा पहुंचा… जैसे ही ड्राइवर ने ट्रक रोका… गाड़ी बंद हो गई।

ड्राइवर: लो भईया… आ गया आपका डेरवा।

पाठक जी: बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी.. कितना रुपया हुआ आपका ?

ड्राइवर: अरे कौने चीज का पैसा… जाओ आप।

पाठक जी: अरे नहीं बताइए… कितना हुआ।

ड्राइवर: 25रू दे दो आप।

’25रू …(आश्चर्यचकित होके) अरे भाई…. ई पकड़ो 100रू… इतने रात में छोड़ो हो।’ पाठक जी ने हाथ बढ़ा कर ₹100 ड्राइवर को थमा दिए।

दोनों लोगों में दुआ – सलाम हुआ… फिर ड्राइवर कुंडा की तरफ़ और पाठक जी मैरिज हॉल की तरफ़ रवाना हुए।

ठाकुर साहब: भाई 2:30 बज रहें है… बहुत देरी कर दी आने में… माँ भी तबसे तुम्हें ही पूछ रहीं हैं।

पाठक जी…ठाकुर साहब संग मैरिज हॉल पहुंचे…. सबसे मुलाकात की…. ठाकुर साहब ने अलग से पनीर की सब्जी और पूड़ी बनवाया।

वर -वधु को सात फेरों के बाद पाठक जी ने भी आशीर्वाद दिया|

दिनचर्या का पूर्ण-विराम लगाते हुए उन्होंने सोचा।

जिंदगी में अगले पल क्या होना है… किसी को नहीं पता। ये 90 किलोमीटर का सफ़र आज कई मायनों में बहुत कुछ सीखा दिया। निस्वार्थ भाव से ठाकुर जी के भाई के शादी के लिए निकले थे…. बीच में कदम भी डगमगाए…पर अंतः अपने गंतव्य स्थान को पहुंच गए।

प्रभु श्री कृष्णा जैसे अर्जुन के सारथी बने थे… शायद वैसे ही पाठक जी के भी आज कई सारथी बने थे… और यही शायद जिंदगी का मूल मतलब भी है।

Yatindra Pandey is the Founder of Motivational Dreams and studying self-development, personal finance and investment for last 3 years. Yatindra's mission is simply, to inspire others to live their dreams and be the person to whom they say, " Because of you, I never gave up. "
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